Life
Here is Priya, my companion, expressed in her new poem. One's dream & potential are achieved at the cost of other. May God gives everyone fair chance and at least a second chance:
http://www.facebook.com/home.php#/note.php?note_id=199823450394&ref=nf
सबसे महत्वकांशी थे हम,
प्रखर, उन्मुक्त और प्रतिभाशाली...
अपने सपनो के रंग ही निराले थे,
ऊँची उड़ानें थी, पंख भी विशाल...
अपनी योजनायें थी, अपनी शर्ते, अपनी मंजिलें और उन तक पहुँचने के अपने बनाये रास्ते......
लोग हमें कभी इंदिरा गाँधी कहते कभी मदर टेरेसा के भक्त कहकर हंसते,
पर वे जानते थे, भरोसा था उन्हें भी... कि ये अपने नए आयामों को खोजेंगी,
जियेंगी अपने मुताबिक जिंदगी को और करेंगी कुछ ख़ास जो नहीं करती छोटे शहर कि लड़कियाँ,
शहर की पहचान में अभी से शामिल है इनका नाम.....
शिक्षक हमारी चमकीली आँखों में नयी दुनिया के स्वप्निल सपने देखते,
हमे मिले प्रान्त और देश के पुरस्कारों से प्रिंसिपल का कमरा भरा रहता था....
आँखों के तारे थे हम...अपने शहर के
मुट्टी में लेकर चलते थे इन्द्रधनुष के सारे रंगों को,
जो मिलता रंग देते थे उसे अपने अलग अलग रंगों से...
समझौता और मजबूरी जैसे शब्द तो जैसे हमें छू कर भी नहीं गुज़रे कभी,
हमेशा बहते थे, तेजी से...अक्सर बहाव का विरोध करते.
निडर, निर्भीक और बेहद साहसी मत के साथ..
हक़ छोड़ते नहीं थे, मुकरते नहीं थे कर्तव्यों से
फिर भी लोग कहते कि इनके जैसे बनो....
अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बदला, एक पर्दा सा है दिल और दिमाग का
जो दुनियादारी और सपनो को अलग कर देता है निर्ममता से.
समझौते होने लगते हैं प्यार के नाम पर...
अंदर रोज़ कुछ सुलगता रहता है..एक आग सी...पर दबा देती हैं परेशानियाँ....
अब बंधे हैं एक खूँटी से, मोह में अटके हैं
बंधन में बंधे हैं, और खुश हैं, हँसते भी हैं.....
'कम से कम दिखते तो ऐसे ही हैं'....
http://www.facebook.com/home.php#/note.php?note_id=199823450394&ref=nf
सबसे महत्वकांशी थे हम,
प्रखर, उन्मुक्त और प्रतिभाशाली...
अपने सपनो के रंग ही निराले थे,
ऊँची उड़ानें थी, पंख भी विशाल...
अपनी योजनायें थी, अपनी शर्ते, अपनी मंजिलें और उन तक पहुँचने के अपने बनाये रास्ते......
लोग हमें कभी इंदिरा गाँधी कहते कभी मदर टेरेसा के भक्त कहकर हंसते,
पर वे जानते थे, भरोसा था उन्हें भी... कि ये अपने नए आयामों को खोजेंगी,
जियेंगी अपने मुताबिक जिंदगी को और करेंगी कुछ ख़ास जो नहीं करती छोटे शहर कि लड़कियाँ,
शहर की पहचान में अभी से शामिल है इनका नाम.....
शिक्षक हमारी चमकीली आँखों में नयी दुनिया के स्वप्निल सपने देखते,
हमे मिले प्रान्त और देश के पुरस्कारों से प्रिंसिपल का कमरा भरा रहता था....
आँखों के तारे थे हम...अपने शहर के
मुट्टी में लेकर चलते थे इन्द्रधनुष के सारे रंगों को,
जो मिलता रंग देते थे उसे अपने अलग अलग रंगों से...
समझौता और मजबूरी जैसे शब्द तो जैसे हमें छू कर भी नहीं गुज़रे कभी,
हमेशा बहते थे, तेजी से...अक्सर बहाव का विरोध करते.
निडर, निर्भीक और बेहद साहसी मत के साथ..
हक़ छोड़ते नहीं थे, मुकरते नहीं थे कर्तव्यों से
फिर भी लोग कहते कि इनके जैसे बनो....
अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बदला, एक पर्दा सा है दिल और दिमाग का
जो दुनियादारी और सपनो को अलग कर देता है निर्ममता से.
समझौते होने लगते हैं प्यार के नाम पर...
अंदर रोज़ कुछ सुलगता रहता है..एक आग सी...पर दबा देती हैं परेशानियाँ....
अब बंधे हैं एक खूँटी से, मोह में अटके हैं
बंधन में बंधे हैं, और खुश हैं, हँसते भी हैं.....
'कम से कम दिखते तो ऐसे ही हैं'....